Friday 8 August 2008

स्वागत बीजिंग ....पर तिब्बतिओं का भी ध्यान रहे


अरविन्द कुमार सिंह
दिनांक ८-८- ०८
बीजिंग ओल्यंपिक की भव्य और रंगारंग शुरूआत भले ही हो गयी हो पर दुनिया के तमाम देशों में जिस तरह से तिब्बतिओं ने अपने मुद्दे को ओल्य्म्पिक के बहाने पहुंचाया, यह भी काफी महत्वपूर्ण घटना मानी जा रही है। किसी भी देश के इतिहास में ओल्य्म्पिक का आयोजन एक शानदार मौका होता है। इस बहाने उस देश को अपनी कला , संस्कृति, सभ्यता तथा विकास को दुनिया को दिखाने का अवसर भी मिलता है। चीन ने भी इस अवसर का लाभ उठाने का भरपूर प्रयास किया है, पर जगह-जगह तिबतियों ने अपनी मुहिम के द्वारा तिब्बत समस्या पर जिस तरह से ध्यान खींचा और उनको जो सहानुभूति मिली , उससे कई बाते साफ होती है। भले ही इस काम में देर हो पर उनके सवालो को चीनी नेतृत्व को एजेंडे पर लाना ही पड़ेगा। आम तौर पर ओल्य्म्पिक के आयोजनों में राजनीति नहीं होती और १९८० के शुरूआती साल को छोड़ दे तो इस बार सा नजारा पहले कभी नहीं दिखा। इस दफा प्रदूषण से लेकर मानवाधिकार जैसे सवालो की गूंज दुनिया भर में सुनायी पड़ी। बेशक चीन महाबली और तमाम मामलो में उसने काफी सफलताएँ हासिल की है। चीन के विरोधी देश भी उसकी इन सफलताओं के लिए उसे सम्मान की निगाह से देखते हैं। तिब्बत के सवाल पर चीन जरूर घिर गया है। साथ ही भारत जैसे देशों के लिए यह सवाल कूटनीति के रिश्तों के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण बन गया है, जहां बहुत बड़ी संख्या में तिब्बती शरणार्थी रह रहे हैं। दिल्ली के जंतर मंतर पर बीते काफी समय से तिब्बती अपने सवाल को मुखर किए हैं और चीनी दूतावास से लेकर तमाम जगहों पर उन्होने विरोध प्रदर्शन भी किया। भारत की सुरक्षा एजेंसियों की चुस्ती के नाते ओल्य्म्पिक मशाल रिले में तो कोई बाधा नहीं डाली जा सकी लेकिन जो कुछ हुआ उसकी पहुच बीजिंग तक जरूर हुई। ओल्य्म्पिक खेलों पर निश्चय ही पूरी दुनिया की निगाह रहती है। इस तरह उससे जुड़े सवाा भी नेपथ्य में नही डाले जा सकते हैं। आज की दुनिया मानवाधिकारों के प्रति काफी सजग और सचेत है। इसी के साथ विश्व जनमत बहुत से सवालो का जवाब दे रहा है। किसी भी देश के पास कितने परमाणु हथियार और कितनी लम्बी मार करनेवाली मिसाइले क्यों न हों विश्व जनमत से बड़ी ताकत उनकी नही है । हाल की लड़ाइयों के बाद अमेरिका ने बखूबी समझा है। इस तरह लाखों तिब्बतिओं की आवाज में जो दुनिया की आवाज मिल रही है तो फिर निश्चय ही वह बीजिंग ओल्य्म्पिक के शोर में दब नहीं सकती और एक दिन चीन को भी उनकी बातों को सुनना ही पड़ेगा और उनके साथ न्यायसंगत वर्ताव करना होगा। हालांकि आयोजको को भरोसा है ,खेल शुरू होने के साथ ही चीन के खिलाफ राजनीतिक विरोध प्रदर्शन नेपथ्य में खो जाएगे। यह एक हद तक सही हो सकता है, पर इन प्रदर्शनों के द्वारा खड़े किए सवालों को एकदम किनारे नही किया जा सकता है। ओल्य्म्पिक की भावना का स्वागत है ,खेल जारी रहने चाहिए पर साथ ही यह भी देखना है, लोगों की भावनाओं के साथ खेल नहीं हो।

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