Tuesday 5 August 2008

देश में प्रतिदिन जाती हैं साढ़े चार करोड़ चिट्ठियां!

देश में प्रतिदिन जाती हैं साढ़े चार करोड़ चिट्ठियां!
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17 जून 2008 वार्ता नई दिल्ली। संचार क्रांति के वर्तमान युग में भी संवाद प्रेषण के पारम्परिक माध्यम ‘पत्र’ की खास अहमियत अभी भी कायम है और देश में आज भी रोजाना करीब साढ़े चार करोड़ ‘चिट्ठियां’ डाक में डाली जाती हैं।दुनिया की तमाम सभ्यता, संस्कृति, साहित्य एवं कला को गति देने वाली, चिट्ठियों का महत्व आज के युग में भी टेलीफोन तंत्र एवं एसएमएस (संदेश) से कहीं ज्यादा है। इसलिए इसकी भूमिका आधुनिक समाज में भी बरकरार है।पढ़ें: अब संदेश भेजे ‘डिजिफ्रैंक प्लस’ पर यही सोचकर राष्ट्रीय शैक्षणिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) ने अपने पाठ्यक्रम में वरिष्ठ पत्रकार अरविन्द कुमार सिंह लिखित ‘चिट्ठियों की अनूठी दुनिया’ शीर्षक से एक अध्याय शुरू करने का निर्णय लिया है।इसमें लिखा गया है कि चिट्ठियों के आदान-प्रदान का इतिहास मानव सभ्यता के विकास से जुड़ा हुआ है, जिसने पिछली शताब्दी में पत्र लेखन का रूप ले लिया और जिसे विश्व डाक संघ ने तरह-तरह से प्रोत्साहित किया। इसी कड़ी में 1972 में 16 वर्ष से कम आयु वर्ष के बच्चों के बीच पत्र लेखन प्रतियोगिताएं शुरू हुई। संचार क्रांति के युग में भी हमारे सैनिक पत्रों का जिस उत्सुकता से इंतजार करते हैं, उसकी कोई मिसाल ही नहीं है।पढ़ें: चिट्ठी पहुंचेगी तो एसएमएस आएगा आज देश में ऐसे लोगों की कमी नहीं है, जो अपने पुरखों की चिट्ठियों को सहेज और संजोकर विरासत के रूप में रखे हुए हों या फिर बड़े-बड़े लेखक, पत्रकारों, उद्यमी, कवि, प्रशासक, संन्यासी या किसान, इनकी पत्र रचनाएं अपने आप में अनुसंधान का विषय हैं।अगर आज जैसे संचार साधन होते तो पंडित नेहरू अपनी पुत्री इंदिरा गांधी को फोन करते, पर तब ‘पिता के पत्र पुत्री के नाम’ पुस्तक की रचना नहीं हो पाती जो देश के करोड़ों लोगों को प्रेरणा का स्त्रोत है। पत्रों को तो सहेजकर रखा जाता हैं पर एसएमएस संदेशों को हम जल्दी ही भूल जाते हैं। तमाम महान हस्तियों की तो सबसे बड़ी यादगार धरोहर उनके द्वारा लिखे गए पत्र ही हैं। भारत में इस श्रेणी में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को सबसे आगे रखा जा सकता है। इस अध्याय में लिखा गया है कि महात्मा गांधी के पास दुनिया भर से तमाम पत्र केवल ‘महात्मा गांधी, इंडिया’ लिखे आते थे और वे जहां भी रहते थे वहां तक पहुंच जाते थे। आजादी के आंदोलन की कई अन्य दिग्गज हस्तियों के साथ भी ऐसा ही था। गांधीजी के पास देश-दुनिया से बड़ी संख्या में पत्र पहुंचते थे पर पत्रों का जवाब देने के मामले में उनका कोई जोड़ नहीं था। कहा जाता है कि जैसे ही उन्हें पत्र मिलता था, उसी समय वे उसका जवाब भी लिख देते थे। अपने हाथों से ही ज्यादातर पत्रों का जवाब देते थे। कई लोगों ने तो उन पत्रों को फ्रेम कराकर रख लिया है।पत्रों के आधार पर ही कई भाषाओं में जाने कितनी किताबें लिखी जा चुकी हैं। वास्तव में पत्र किसी दस्तावेज से कम नहीं हैं। पंत के दो सौ पत्र बच्चन के नाम और निराला के पत्र ‘हमको लिख्यौ है कहा’ तथा ‘पत्रों के आईने में’ दयानंद सरस्वती समेत कई पुस्तकें उपलब्ध हैं। कहा जाता है कि प्रेमचंद खास तौर पर नए लेखकों को बहुत प्रेरक जवाब देते थे तथा पत्रों के जवाब में वे बहुत मुस्तैद रहते थे।इसी प्रकार नेहरू और गांधी के लिखे गए रवींद्रनाथ टैगोर के पत्र भी बहुत प्ररेक हैं। ‘महात्मा और कवि’ के नाम से महात्मा गांधी और रवींद्रनाथ टैगोर के बीच सन 1915 से 1941 के बीच के पत्राचार का संग्रह प्रकाशित हुआ है जिसमें बहुत से नए तथ्यों और उनकी मनोदशा का लेखा-जोखा मिलता है।

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